माँ बगलामुखी देवी का रहस्य और महासाधना

प्रारंभ

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन मा कर्मफल हेतुर्भः मा सङ्गऽस्तवर्कमणि।

भवार्थ - तेरा केवल कर्म मे ही अधिकार है। उसके फलो मे कभी नहीं इसलिए तू कमों के फल हेतु मत हो तथा तेरी अकर्म मे भी आसक्ति न हो (अ. 247 गीता) अतः मैने यह पुस्तक माँ बगलामुखी देवी की साधना एवं नलखेड़ा का महत्व कोई सम्मान पद की आशा से नही लिखी वरन् माँ बगलामुखी देवी के भक्त को को दर्शन करना का एक छोटा सा प्रयास किया है भक्त से मुझे प्रेम और आर्शिवाद प्राप्त करने की इच्छा अवश्य है नलखेड़ा निश्चत ही रुप से एक धार्मिक शहर रहा होगा किन्तु इतिहासकार एवं धार्मिक चिन्तन के विचार को का ध्यान पार्प इस और क्यों नहीं गया यही मेरा विषय है। भवनो एवं मूर्तियो का प्रारुप (डिजाइन) और निर्माण का रहस्य पुरातन, विज्ञान तथा कला वास्तु शिल्पशास्त्र का मूल स्थापत्य वेदो मे है जो चारो वेदो मे योग्न से एक अर्थववेद है वर्तमान मे दुःखद बात यह है कि वास्तु पद्धति को दर किनारे को रख कर भव्य मंदिरो का निर्माण हो रहा है माँ बगलामुखी देवी का मंदिर भारत देवी के महत्वपूर्ण मंदिरो मे से एक है। विषयवस्तु का ध्यान रखतेहुए मैने माँ बगलामुखी देवी की साधना एवं नलखेड़ा के महत्व पर अपने श्रद्धावान विचार प्रस्तुत किये है। आईये बन्धु हम इतिहास ज्योतिषशास्त्र, धर्मशास्त्र, वास्तुशास्त्र के दर्पण में देखते हैं कि माँ बगलामुखी देवी का मंदिर एवं नलखेड़ा शहर की निर्माण की अवधी किस काल की होगी। माँ बगलामुखी देवी मंदिर की प्राचीनता की खोज मे मुझे विशेष रुची हुई और मैं प्रमुख तीर्थ स्थलो पर निर्मित मंदिरो की मुर्ति कला के दर्शन करने पहुच गया।

1. दतिया - दतिया मे निम्नलिखित प्रसिद्ध मंदिर है प्रथम दन्तक्त्रेश्वर मंदिर को मुख्य मंदिर मानते है इन्हे लोग मडिया महादेव भी कहते है इसके अलावा वनखण्डेश्वर पकोरिया महादेव, नरसिंग मंदिर, बड़े गोविन्दजी, राज राजेश्वर एवं भैरवजी का प्राचीन मंदिर है यहा दस विध्या की प्रमुख देवी घुमावती एवं अष्टमदेवी माँ बगलामुखी देवी के चमत्कारीक मंदिर है यहाँ रतनगढ़ की काली माता की मुर्ति छत्रपति शिवाजी द्वारा प्रतिष्ठत कि है दक्षिण भारत के मंदिरो मे जो मूर्ति कला का चित्रण हुआ है वह संसार मे कही देखने को नही मिला है।

2. आबू - आबु पर्वत पर विश्व प्रसिद्ध कलात्मक जैन मंदिर है। सफेद संगमरमर आर भगवान महावीर एवं जैन तीर्थकर भगवान की विशाल मूर्ति ता का एक वास्तुकला का सुन्दर नमुना है इन पर इतनी बारीकी से खुदाई की गई है कि विश्व नवपरिवार, में इनमे समकक्ष कोई भी मूर्ति कला टीक नही सकती यहाँ पर देववाड़ा यज्ञेश्वनाथ संगमरमर तीर्थ आदि जैन मंदिर भी इतिहासीक मंदिर है अजंता ऐलोरा की मूर्तियो को संसार के सभी चित्रकला प्रेमी जानते है। उज्जैन में महाकाल, चिंतामण गणेश, कालभैरव, हरसिद्धि, मंगलनाथ आदि मंदिर मूर्तिकला के स्रोत है। सोमनाथ मंदिर इतिहासीक मंदिर के अलावा धार्मिक मंदिर की श्रेणी में भी आता है। स्वास्थ्य ठिक नहीं होने के कारण पुनः मेरी खोज गति मे विराम लग रहा है इस हेतु प्रबुद्ध पाठको से क्षमा चाहता हूँ 1. अमरनाथ मे हिम निर्मित शिवलिंग स्वतः बनता है अतः यह मानव द्वारा मेश्वरम, निर्मित नहीं है स्वतः अभिरभाव कब हुआ है इसका समय निकालना असंभव है स्वतः अभिरभाव मंदिर में मैं बालकुमारी देवी मंदिर से बहुत प्रभावित हुआ हुँ क्योकि इतिहास इसका साक्षी है कि यह मंदिर माँ बगलामुखी देवी के मंदिर के समान सुन्दर स्थल स्थीत है और वह मानव द्वारा निर्मित नही है शाकुम्भरी देवी की मूर्ति की तुलना में माँ बगलामुखी देवी की मूर्ति से अवश्य करूंगा क्योकि यह देवी की मूर्ति स्वयंभू निर्मित है और माँ बगलामुखी देवी की मूर्ति भी स्वयंभू निर्मित है। अतः मैं यह कहने में समर्थ हूँ कि माँ बगलामुखी देवी की मूर्ति मानव द्वारा की निर्मित न होकर स्वयंभू निर्मित मूर्ति है।

माँ बगलामुखी देवी मन्दिर की प्राचीनता जगा पर चिन्तन एवं नलखेड़ा का महत्व

मन्दिर की प्राचीनता के लिए हमे महाभारतकालीन इतिहास के दर्पण में दर्शन कष्टो करने होगे। प्रबुद्ध पाठक को यह ज्ञात होना चाहिए कि इतिहासकार महाभारत युद्ध को देवी ईसा से 3000 वर्ष पूर्व मानते है। इस युद्ध का वर्णन पाणिनी के व्याकरण में होने के स्वीक कारण विद्वान इतिहासकार इसकी आयु 2-3 हजार ईसवी पूर्व मानते है। डॉक्टर राधाकृष्ण, रानाडे श्री गोभण्डाकर आदि विद्वान इतिहासकार उपरोक्त सफल मत से सहमत हैं, किन्तु चिन्तामणि राव वैद्य उपरोक्त मत से सहमत नहीं है। वह महाभारत के काल को 5000 वर्ष पुराना मानते है। इतिहासकार राजाराम शास्त्री भी ऐसा ही मानते है। यदि उपरोक्त मतो पर चिन्तन करते है तो हम मन्दिर की प्राचिनता की सत्यता के करीब होंगे |

2. धर्मग्रन्थों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि जब भी भगवान, देवता या ऋषियों पर देत्यों या प्रकृति के प्रकोप आये तो वह शक्ति की शरण में गये और कष्टों से मुक्त हुऐ है। रामायाण के अध्ययन से ज्ञात होता है कि रावण की विशाल सेना और पराक्रम के सामने राम जब युद्ध में विजय को लेकर शंकित हुऐ तो उन्हे भी शक्ति की शरण में जाना पड़ा। विजय का संकल्प लेकर शक्ति की आराधना करनी पड़ी। कि शक्ति के आशीर्वाद के कारण ही उन्हें विजय प्राप्त हुई। (धर्मग्रन्थों में ऐसे एक नहीं हजारों उदाहरण है) ठीक इसी प्रकार जब पाण्डव अपना वैभव एवं राजपाट सभी "खो" चुके तो वह भगवान कृष्ण की शरण में गये। भगवान ने उन्हें शत्रुओं को तो नाश करने वाली और युद्ध में विजय दिलाने वाली देवी माँ बगलामुखी की शरण में जाकर उनकी आराधना का निर्देश दिया।

3. हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि भगवान त्रिलोकी है वह इस सत्य से परिचित थे कि जब संसार मे भयंकर तूफान आया तो स्वंय भगवान विष्णु उस प्रलय को रोकने मे असमर्थ हो गये। तब वह भगवती की शरण में गये तो भगवती ने कहा आप माँ बगलामुखी की आराधना करो। भगवान विष्णु ने सौराष्ट्र में हरिद्रा नामक स्थान में माँ बगलामुखी की आराधना की। माँ बगलामुखी आराधना से प्रसन्न हुई और भगवान विष्णु को दर्शन दिये। भगवान की करुणामय कथा सुन उन्होंने प्रलय को स्तम्भ किया और भगवान को संसार की चिन्ता से मुक्त किया। अतः उन्होंने पाण्डवों को कष्टों के तूफान से उबरने के लिऐ एवं युद्ध में विजय पाने के लिए माँ बगलामुखी देवी की आराधना का आदेश दिया। भगवान के आदेश को पाण्डवों ने सहर्ष स्वीकार किया और आराधना की "स्थल" के खोज में चल दिये। उन्होंने ऐसे स्थान को चुनने का मन बनाया जहाँ उन्हें स्वर्गिक शान्ति प्राप्त हो एवं तपस्या भी सफल होवे।

लखुन्दर (लक्ष्मणा) नदी

श्री कृष्ण की प्रेरणा से पाण्डवों ने वर्तमान स्थान पर जहाँ वर्तमान में माँ बगलादेवी का मन्दिर है (नलखेड़ा) वहाँ अपनी यात्रा को उन्होंने विश्राम दिया। लखुन्दर नदी के तट के समीप पाण्डवों ने माँ बगलादेवी की घोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न हो माँ ने उन्हे दर्शन दिये एवं युद्ध मे विजय होने का आशीर्वाद दिया। अध्यात्म रामायण या तुलसीकृत रामायण का अध्ययन करें तो हम देखेंगे कि शक्ति की कृपा से राम ने रावण की विशाल सेना को पराजित कर लंका पर विजय पाई। ठीक इसी प्रकार माँ भगवती बगलामुखी की कृपा एवं आशीर्वाद के कारण ही पाण्डव युद्ध मे विजयी हुए। महाभारत का अध्ययन करें तो हम देखेंगे कि कृष्ण ने तो शपत ली थी कि वह युद्ध में शस्त्र नहीं उठाऐंगे। युद्ध में भगवान कृष्ण के दर्शन के केवल सारथी के रुप में ही होते है। मेरा यह चिन्तन है कि माँ बगलामुखी देवी की कृपा यदि पाण्डवों पर नहीं होती तो युद्ध में विजय पाना असम्भव था। माँ के मन्दिर का वर्णन राजा विक्रमादित्य के काल में भी मिलता है। यदि हम विश्व की मूर्तियों की बनावट शैली का अध्ययन करें तो 2500 या 3000 ईसा पूर्व मूर्त रुप देने का ज्ञान कलाकार को हो चुका था किन्तु माँ बगलामुखी देवी की अलौकिक मूर्ति के दर्शन हमें 3000 वर्ष पूर्व की शैली के रुप में होते हैं। मैं व्यक्तिगत तौर पर इस निर्णय पर पहुँचा हूँ कि नलखेड़ा में जो माँ बगलामुखी देवी का मंन्दिर है, इसका अभिभाव 3000 ईसा पूर्व है।

मंदिर कैसे पहुंचे

rail
ट्रेन द्वारा

निकट रेलवे स्टेशन शाजापुर से 58 किमी एवं उज्जैन से 98 किमी दूर है। उज्जैन रेल, मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद और बैंगलोर जैसे प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

road
सड़क के द्वारा

नलखेड़ा आगर मालवा सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। आप यहाँ टैक्सी किराए पर लेकर या उज्जैन (98 किमी), इंदौर (156 किमी), भोपाल (182 किमी) और कोटा राजस्थान (191 किमी) से बस पकड़कर आ सकते हैं।

airplane
वायु मार्ग

निकटतम देवी अहिल्या बाई होलकर हवाई अड्डा इंदौर, जो 156 किमी दूर है। यह मध्य प्रदेश का सबसे व्यस्त हवाई अड्डा है और दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई, अहमदाबाद, कोलकाता, बेंगलुरु, रायपुर और जबलपुर जैसे शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

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